
युवाओं को लेकर एक नई रिसर्च हुई है, जिसमें उनकी जिंदगी पर खतरा बताया गया है. दरअसल, इस रिसर्च में कहा गया है कि जिन लोगों को अडल्टहुड के दौरान टाइप-1 डायबिटीज हो जाती है, उनमें कार्डियोवैस्कुलर डिजीज बीमारियों का शिकार और मौत होने का खतरा बढ़ जाता है.
रिसर्च में सामने आई यह बात
अहम बात यह है कि जिन लोगों को इस बीमारी का पता बाद में लगा, उनकी हालत पहले मिले मरीजों से ज्यादा बेहतर नहीं है. यह स्टडी स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट के रिसर्चर्स ने की. इसमें पता लगा कि स्मोकिंग, खराब ग्लूकोज कंट्रोल और मोटापा इस दिक्कत की मुख्य वजह हैं.
इन लोगों पर की गई रिसर्च
बता दें कि व्यस्कों में होने वाले टाइप-1 डायबिटीज पर रिसर्च काफी कम हुई है. ऐसे में रिसर्चर्स इस ग्रुप के लोगों में हार्ट डिजीज और मौत के खतरों की जांच करना चाहती थी. इनमें खासकर उन लोगों को रखा गया, जिनमें बीमारी का पता 40 साल की उम्र के बाद लगा.
इन दिक्कतों की मिली जानकारी
यह स्टडी यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित हुई. इसमें 2001 से 2020 के बीच उन लोगों की पहचान की गई, जिन्हें अडल्टहुड के दौरान टाइप-1 डायबिटीज हो गया था. इनकी तुलना कंट्रोल ग्रुप के 509,172 लोगों से की गई. स्टडी में पता लगा कि अडल्टहुड के दौरान टाइप-1 डायबिटीज के शिकार हुए लोगों में कंट्रोल ग्रुप के मुकाबले कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और मौत का खतरा ज्यादा पाया गया. इसके अलावा कैंसर और इंफेक्शन जैसी दिक्कतें भी सामने आईं.
एक्सपर्ट ने दी यह सलाह
कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के पर्यावरण चिकित्सा संस्थान की पोस्टडॉक्टरल फेलो युक्सिया वेई ने कहा कि ये बीमारियां होने की मुख्य वजह स्मोकिंग, मोटापा, ओवरवेट और खराब ग्लूकोज नियंत्रण है. रिसर्च में सामने आया है कि युवा इंसुलिन पंप जैसी चीजों का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करते हैं. ऐसे में रिसर्चर्स ने युवाओं में टाइप-1 डायबिटीज की जांच जारी रखने का प्लान बनाया है, जिससे इसकी वजह से होने वाले खतरों का पता लगाया जा सके.
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