Aurangzeb:औरंगजेब को औरंगाबाद में क्यों दफनाया गया था?

Aurangzeb: औरंगजेब, जिनका पूरा नाम अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर था. मुगल साम्राज्य के छठे शासक थे. उनका जन्म 1618 में हुआ था और 1707 में 87 साल की उम्र में अहमदनगर में उनका निधन हो गया और उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में दफनाया गया. औरंगजेब का अंतिम समय दक्षिण भारत में बीता, जहां उन्होंने लंबे समय तक मराठों और अन्य स्थानीय शासकों से युद्ध किया. वे अपने धार्मिक विचारों, कठोर अनुशासन और सैन्य अभियानों के लिए प्रसिद्ध थे.

खुल्दाबाद: सूफी संतों और ऐतिहासिक धरोहर का केंद्र

महाराष्ट्र का खुल्दाबाद, जिसे पहले ‘ज़मीन पर जन्नत’ कहा जाता था, दक्षिण भारत में सूफी संतों और इस्लामिक संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र रहा है. यह स्थान न केवल सूफी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां कई ऐतिहासिक धरोहरें भी स्थित हैं. भद्र मारुति मंदिर, सूफी संतों की दरगाहें और कई मुग़ल शासकों एवं प्रतिष्ठित हस्तियों की कब्रें यहां मौजूद हैं. इतिहासकारों के अनुसार, खुल्दाबाद सदियों से एक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल रहा है. काबुल, बुख़ारा, कंधार, समरकंद, ईरान और इराक जैसे दूरस्थ स्थानों से सूफी संत यहां आए और यहीं बस गए. यह स्थान सूफी विचारधारा और भक्ति परंपरा का केंद्र बना, और इसी वजह से मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी इसे अपनी अंतिम विश्राम स्थली के रूप में चुना.  

औरंगजेब को खुल्दाबाद में दफनाने का कारण

मुगल सम्राट औरंगजेब का निधन 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुआ और उनके पार्थिव शरीर को उनकी वसीयत के अनुसार खुल्दाबाद लाया गया. उन्होंने अपनी वसीयत में स्पष्ट रूप से लिखा था कि उनकी कब्र उनके आध्यात्मिक गुरु सूफी संत सैयद ज़ैनुद्दीन के पास बनाई जाए, जिन्हें वे अपना पीर मानते थे. इतिहासकार डॉ. दुलारी कुरैशी के अनुसार, सैयद ज़ैनुद्दीन सिराज पहले ही इस दुनिया को छोड़ चुके थे, लेकिन औरंगजेब उनकी शिक्षाओं और विचारों का अनुसरण करते थे. वे पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि रखते थे और सूफी परंपराओं से प्रभावित थे. इसी कारण उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनका मकबरा ज़ैनुद्दीन सिराज की कब्र के पास हो. 

औरंगजेब का सादगी भरा मकबरा

औरंगजेब ने अपनी वसीयत में यह भी लिखा था कि उनके मकबरे पर कोई भव्य निर्माण न किया जाए. उन्होंने अपने जीवनयापन के लिए टोपियां सिलकर और अपने हाथों से कुरान लिखकर धन अर्जित किया था. उनकी इच्छा थी कि उनके मकबरे के निर्माण में केवल वही धन लगाया जाए, जो उन्होंने अपनी मेहनत से कमाया है. उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी कब्र पर सिर्फ़ सब्ज़े (तुलसी) का पौधा लगाया जाए और कोई छत न बनाई जाए. औरंगजेब के निधन के बाद उनके बेटे आजम शाह ने खुल्दाबाद में उनका मकबरा बनवाया. यह मकबरा पहले बहुत साधारण लकड़ी से बना हुआ था, जो मुगल बादशाहों के भव्य मकबरों से बिल्कुल अलग था.

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