Chanakya Niti: युद्ध में विजयी वही होता है जो पहले तैयारी करता है, न कि वो…

Chanakya Niti: चाणक्य नीति एक अद्भूत ग्रंथ है जिसमें आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त) ने जीवन, राजनीति, कूटनीति और युद्ध के हर पक्ष को सूक्ष्म दृष्टि से देखा है. युद्ध और शत्रु के व्यवहार के बारें में सूक्ष्म जानकारी दी है, उनके सूत्र आज भी भारत की सुरक्षा नीति, कूटनीति और सैन्य अभ्यासों में स्पष्ट रूप से नजर आते हैं. आइए जानते हैं चाणक्य नीति-

1. शत्रु को कभी हल्के में न लें
‘नातिस्नेहं कृत्वा शत्रौ नातिद्वेषं च मित्रके.
सर्वत्र युक्तमाचार्यं सर्वदा समुपेक्षयेत्॥’

चाणक्य नीति का यह श्लोक बताता है कि शत्रु चाहे छोटा हो या बड़ा, कभी भी अति आत्मीयता या घृणा के भाव में न आएं. उसे हर समय सावधानी और बुद्धिमानी से देखें.

शिक्षा: कभी भी शत्रु को तुच्छ न समझें. एक कमजोर प्रतीत होने वाला शत्रु भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है.

2. युद्ध तभी करें जब जीत निश्चित हो
‘बलेन हीनः संज्ञाय न कदाचिद् रणे युधेत्.
यो हि न ज्ञायते शत्रुं स सदा नाशमेति च॥’

इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य अपनी नीति के अनुसार बताने का प्रयास करते हैं कि जो राजा बल, ज्ञान और समय का विचार किए बिना युद्ध करता है, वह स्वयं विनाश को आमंत्रित करता है.

शिक्षा: युद्ध का निर्णय भावनात्मक नहीं, रणनीतिक होना चाहिए.

3. पहले कूटनीति, फिर शक्ति
‘सामं दानं भेदं दंडं नीतयः चतस्रः स्मृताः.
तासां क्रमशः कार्यः प्रथमं सामं प्रयोजयेत्॥’

आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र के खंड 6, अध्याय 2 में कहते है कि शत्रु को पराजित करने के लिए चार उपाय हैं, साम, दाम, भेद और दंड. पहले साम अर्थात् संवाद और मेल से कार्य लेना चाहिए.

शिक्षा: सीधे युद्ध करने से पहले वार्ता, प्रलोभन और गुप्तचर नीति से शत्रु को परास्त करें.

4. शत्रु के भीतर विद्रोह पैदा करो
‘परराज्ये च संप्राप्तं विद्रोहं चातिसंयतः.
शत्रोः मध्ये विद्वेषं कुर्याच् छत्रुक्षयहेतवे॥’

चाणक्य का इस श्लोक के माध्यम से स्पष्ट कहना कि शत्रु के राज्य में विद्रोह और आपसी संघर्ष को उकसाना ही विजय की एक प्रमुख रणनीति है.

शिक्षा: यह नीति आज की Hybrid Warfare या Psychological Warfare से मेल खाती है.

5. संपूर्ण विजय ही सच्ची विजय है
‘शक्ति-हीनं कृतनीतिं जितं च न मानेन् रिपुं.
स एव बलवान् यत्र न रिपुः कदापि उद्भवेत्॥’

चाणक्य नीति के इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विजय तब ही मानी जाए जब शत्रु की शक्ति, उसकी रणनीति और उसके मनोबल — तीनों का विनाश हो जाए.

शिक्षा: केवल भूमि या सेना जीतना पर्याप्त नहीं, शत्रु के भविष्य के प्रयासों को भी समाप्त करना चाहिए.

युद्ध क्या अंतिम उपाय है?
चाणक्य की नीति में युद्ध को अंतिम उपाय माना गया है, लेकिन यदि युद्ध अपरिहार्य हो, तो वह इतना निर्णायक हो कि शत्रु फिर कभी खड़ा न हो सके. यही नीति आज भारत के सैन्य अभ्यासों, मॉक ड्रिल (Mock Drill) और सीमा-रणनीति में झलकती है. चाणक्य के श्लोक सिर्फ इतिहास नहीं, वे आज के भारत की रणनीति के जीवंत स्तंभ नजर आते हैं.

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