Ganga Dussehra: 60000 राजकुमारों की आत्मा के लिए क्यों धरती पर उतरी थीं मां गंगा?

Ganga Dussehra 2025: गंगा, यह सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि तप, त्याग और अध्यात्म की प्रतीक है. यही वजह है कि हिंदू धर्म में ये सबसे पूज्यनीय है. गंगा अवतरण की कथा जो आज भी पितृ ऋण और मोक्ष के दर्शन के साकार करती है. आइए जानते हैं गंगा के धरती पर आने की कथा.

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय की बात है अयोध्या के महान राजा सगर, जिनकी दो रानियां थीं, ने जब अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया, तब कौन जानता था कि वह यज्ञ 60000 प्राणों का प्रश्न बन जाएगा.

राजा सगर के एक पुत्र असमंजस, जो प्रारंभ में क्रूरता का प्रतीक था, जीवन के उत्तरार्ध में वैराग्य धारण कर सच्चे सुधार की मिसाल बना. लेकिन इस कहानी की असली शुरुआत तब हुई जब इंद्र ने राजा सगर के यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.

सगर के 60000 पुत्रों ने घोड़े की खोज में धरती को खोद डाला, जिससे चारों ओर सागर बन गए, जिनका नाम आज भी ‘सागर’ इन्हीं के कारण है. लेकिन जैसे ही वे कपिल मुनि तक पहुंचे, अज्ञानवश उन पर आक्रमण कर बैठे. मुनि की दृष्टि खुलते ही वे सभी भस्म हो गए.

गंगा के बिना मोक्ष नहीं!
राजा सगर के पौत्र अंशुमान ने कपिल मुनि से क्षमा मांगी और यह जानकर चौंक गया कि इन आत्माओं को तभी मोक्ष मिलेगा जब गंगा धरती से होकर पाताल में पहुंचेगी. पर गंगा को पृथ्वी पर लाना एक असंभव सा कार्य था.

पीढ़ियों तक चला तप
अंशुमान ने जीवनभर तप किया पर सफल न हो सके. उनके पुत्र दिलीप ने भी प्रयत्न किया, लेकिन वे भी असफल रहे. अंततः भगीरथ ने ब्रह्मा की हजार वर्षों तक तपस्या की और मां गंगा को पृथ्वी पर लाने की अनुमति प्राप्त की.

गंगा ने चेतावनी दी कि उनके वेग से धरती टूट जाएगी. तब भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की और शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण करने का वचन दिया.

गंगा अहंकारवश पूरी धरती को बहा ले जाने का प्रयास कर रही थीं. तब शिव ने उन्हें अपनी जटा में ऐसा बांध लिया कि एक बूंद तक बाहर न निकली. भगीरथ ने पुनः वर्षों तक शिव की प्रार्थना की. तब जाकर एक धारा निकली जिसे आज हम भागीरथी कहते हैं.

अगस्त्य मुनि ने पी ली पूरी गंगा!
जब गंगा पाताल की ओर जा रही थीं, तब उनका वेग अगस्त्य मुनि के तप को बाधित करने लगा. ऋषि ने गंगा को पूरा पी लिया. भगीरथ ने फिर प्रार्थना की, और अगस्त्य ने अपने कानों से गंगा को बाहर निकाला.

गंगा दशहरा 2025 (Ganga Dussehra 2025 Date)
यह तिथि थी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, जिसे आज गंगा दशहरा कहते हैं. पंचांग अनुसार 5 जून 2025 को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा. कहते हैं कि इसी दिन भगीरथ मां गंगा को पाताल लोक तक ले गए, जहां उन्होंने अपने पितरों की राख पर गंगा जल प्रवाहित किया.

सगर के 60000 पुत्रों को अंततः स्वर्ग प्राप्त हुआ. यह कथा केवल इतिहास नहीं, एक आध्यात्मिक सत्य है, जो ‘हमारे कर्म केवल हमारे लिए नहीं, हमारी सात पीढ़ियों तक असर डालते हैं.’ इसका संदेश देती है. 

गंगा दशहरा केवल स्नान का पर्व नहीं, यह आत्मशुद्धि, कृतज्ञता और मोक्ष की यात्रा की प्रतीक भी है. हर बार जब गंगा स्नान करें, याद करें भगीरथ जी को, जिन्होंने हजारों वर्षों की तपस्या से गंगा को बुलाया था.

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