
War Trauma Syndrome: युद्ध चाहे कितनी भी कम देर का क्यों न हो, इसका असर आम लोगों के दिल और दिमाग में गहराई से पड़ने लगता है. जब मिसाइलें दागी जाती हैं और गोलियां चलती हैं, तो जंग सिर्फ सरहदों पर नहीं होती, बल्कि इंसानी मानसिकता पर भी गहरी चोट करती है. कई लोग डर, तनाव और अनजानी आशंकाओं में घिर जाते हैं. इसी मानसिक दबाव से जन्म लेती है एक खतरनाक स्थिति, जिसे वॉर सिंड्रोम कहते हैं. यह ऐसा सिंड्रोम है जो इंसान को अंदर से तोड़ देता है. आज हम बात करेंगे इस सिंड्रोम के बारे में, इसके लक्षणों, प्रभावों और इससे बचाव के तरीकों को समझेंगे.
वॉर सिंड्रोम क्या है?
वॉर सिंड्रोम एक मानसिक विकार है जो किसी भी बड़े ट्रॉमा या हादसे के बाद विकसित होता है. युद्ध जैसी स्थितियों में जब इंसान जान का खतरा महसूस करता है या अत्यधिक हिंसा का गवाह बनता है, तब उसका दिमाग इस तनाव को झेल नहीं पाता. यह तनाव धीरे-धीरे अवसाद, बेचैनी, नींद की कमी और डर के रूप में सामने आता है.
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वॉर सिंड्रोम के लक्षण कैसे होते हैं?
जिसको भी वॉर सिंड्रोम होता है, उसे बार-बार डरावने सपने आने लगते हैं.
छोटी-छोटी बातों पर घबराहट होने लगती है.
ऐसे लोग किसी भी आवाज या घटना पर अचानक चौंक जाते हैं.
अकेलापन और अवसाद महसूस करने लगते हैं.
हिंसक या आत्मघाती विचार भी कभी-कभी आने लगते हैं.
कौन-कौन हो सकता है सबसे ज्यादा प्रभावित?
इस सिंड्रोम का असर सबसे ज्यादा उन सैनिकों पर पड़ता है जो सीधे युद्ध का हिस्सा रहे हों. इसके अलावा शरणार्थी, युद्ध क्षेत्र में रहने वाले आम नागरिक और यहां तक कि बच्चे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. कई बार यह असर युद्ध खत्म होने के बाद भी सालों तक बना रहता है.
इससे निपटने के उपाय क्या है?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से बातचीत करना सबसे जरूरी कदम है. थेरेपी से मानसिक घावों को ठीक किया जा सकता है.
परिवार और दोस्तों का साथ इस मुश्किल वक्त में मदद करता है.
दिमाग को शांत करने के लिए ध्यान और योग असरदार होते हैं.
युद्ध का दर्द केवल घायल शरीरों तक सीमित नहीं रहता, यह दिमाग पर भी गहरे घाव छोड़ता है. वॉर सिंड्रोम एक साइलेंट किलर है, जो इंसान को अंदर से खत्म कर सकता है. इसलिए जरूरी है कि, युद्ध के बाद मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए और पीड़ितों को समय रहते सही इलाज और सहारा मिले.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.