
Jinn: ‘जिन्न’ अरबी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ छिपना या छिपाना है. जिन्न और फरिश्तों को अल्लाह का अलौकिक प्राणी माना जाता है. लेकिन फर्क इतना है कि जिन्न मनुष्यों के विपरीत अदृश्य है. लेकिन सवाल यह है कि जब जिन्न अदृश्य है तो हम उसकी वास्तिवकता को कैसे समझें. इसलिए यह सवाल पैदा होता है कि क्या जिन्न वाकई में होते हैं? मनुष्यों के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जिससे कि वे जिन्न को देख सकें. लेकिन कुरान और हदीस में जिन्न का उल्लेख मिलता है.
कुरान और हदीस में जिन्न का जिक्र (Jinn Mention in Quran and Hadith)
- कुरान के आयतों में अल्लाह ने विभिन्न उदाहरणों में जिन्न के अस्तित्व के बारे में बताया. जैसे सूरह अल हिज्र आयत 27 में, अल्लाह का जिक्र है कि: ”और हमने जिन्न को उससे पहले लपटदार आग से पैदा किया.”
इसका अर्थ है कि, अल्लाह ने इंसानों को जिर तरह मिट्टी से बनाया, उसी तरह जिन्नों को आग की लपटों से पैदा किया है. - कुरान की सूरह अज़-ज़ारियात 51:56 में जिक्र है कि: “और मैंने जिन्नों और इंसानों को सिर्फ इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें.”
इसका अर्थ है कि, जिन्न भी ईमान ला सकते हैं या इंकार कर सकते हैं. - हदीस में जिक्र आता है कि: “जिन्नों में तीन प्रकार होते हैं: कुछ उड़ते हैं, कुछ सांप और कुत्तों की तरह होते हैं, और कुछ इंसानों की तरह बसते हैं.”
- कुरान की सूरह अल-जिन्न 72:11 में जिन्न खुद कहते हैं:“हममें से कुछ नेक हैं और कुछ हमसे अलग हैं”
यानी जैसे इंसान अच्छे-बुरे होते हैं, वैसे ही जिन्न में भी. - कुरान (सूरह अल-कहफ 18:50) में अल्लाह फरमाता है: “वह (इबलीस) जिन्नों में से था.”
यानी शैतान कोई गिरा हुआ फरिश्ता नहीं, बल्कि एक जिन्न था. - (सूरह अल-जिन्न 72:1) “कह दो: मेरी ओर वह वह़ी की गई है कि जिन्नों के एक समूह ने सुनी.“
यानी जब नबी कुरान की तिलावत कर रहे थे, तब कुछ जिन्न आकर सुनने लगे और ईमान ले आए. इसका मतलब यह हुआ कि कुरआन जिन्नों पर भी असर डालता है. - हदीस और कुरान दोनों में ऐसे संकेत मिलते हैं कि, जिन्न होते हैं. लेकिन कुछ जिन्न शैतानी ताकतों से जुड़े होते हैं, जो इंसानों को तकलीफ भी पहुंचा सकते हैं. शयातीन बाहर निकलते हैं. इसलिए रसूल ने मदीना की रात के समय बच्चों को अकेला बाहर न छोड़ने की सलाह दी.“
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